महाराजा अग्रसेन जी के आदशों एवं सिद्धान्तों के आधार पर अग्रसेन धाम के निर्माण का संकल्प लिया गया है। यह धाम 300 बीघा भूखंड पर बन रहा है| अग्रसेन धाम के निर्माण से हम शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार प्रशिक्षण, सांस्कृतिक उत्थान आदि को क्रियान्वित कर सकेंगे। अग्रसेन धाम राजस्थानी कला की रूप सज्जा से बागनान, हावड़ा में निर्मित हो रहा है एवं सभी के लिये दर्शनीय एवं नई प्रेरणा का स्रोत होगा। भगवान राम जी की सूर्यवंशी कुल परम्परा में आज से लगभग 5200 वर्ष पूर्व जिस आदर्श पुरुष एवं अपने युग के श्रेष्ठ राष्ट्रनायक ने क्षत्रिय धर्म को त्याग कर वैश्य धर्म का वरण किया था, उन्हें हम महाराजा अग्रसेन जी के नाम से श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं । आर्य संस्कृति के ज्ञात इतिहास में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी के बाद महाराजा अग्रसेन जी ने आदर्श परिवार व्यवस्था, सुदृढ़ प्रजातांत्रिक प्रशासन एवं समतामूलक आदर्श समाजवाद की स्थापना एवं आत्मोत्कर्ष के लिए अहिंसा, सत्य, सद्भाव के साथ सुव्यवस्थित वैवाहिक जीवन का सूत्रपात किया था। महाराजा अग्रसेन जी मात्र अग्रवंश के ही प्रेरणा स्रोत नहीं है, अपितु वे समस्त मानवता के लिए आदर्श हैं । महाराजा अग्रसेन जी के इन्हीं स्वर्णिम आदर्शो के द्वारा ही हम विश्व में हर प्रकार से पुष्ट समाज की स्थापना कर सकते हैं। महाराजा अग्रसेन जी की इसी परंपरा और आदर्शों का पालन करते हुए उनके वंशजो ने समाज के उत्थान के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं जैसे अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, मन्दिर, पुस्तकालय, औषधालय आदि का निर्माण एवं उनके संचालन में पूर्ण रूप से समर्पित है।
महाराजा अग्रसेन जी एक योद्धा, राजा और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 15 सितंबर 3082 ईसा पूर्व (5102 वर्ष पहले), विक्रम संवत 01 अश्विन 3139 ईसा पूर्व (5159 वर्ष पहले) हुआ था। जन्म से सनातनी (आर्य), द्वापर युग के अंतिम चरण में भगवान श्री राम जी (विष्णु अवतार) की 15वीं पीढ़ी के माने जाते हैं।
महाराजा वल्लभ जी और रानी भगवती देवी के पुत्र होने के नाते, (आज के राजस्थान में प्रताप नगर के राजा) महाराजा अग्रसेन जी त्याग, करुणा, अहिंसा, शांति के दूत, विश्व समृद्धि के प्रतीक और एक सच्चे समाजवादी थे।
एक ईंट एक सिक्का महाराजा अग्रसेन जी द्वारा अपने पूरे साम्राज्य को दी गई नीति थी।
1 ईंट से अपने निवास भवन की शुरुआत करें और 1 सिक्के से अपने व्यवसाय की शुरुआत करें।
राजकुमार अग्रसेन जी अपनी दयालुता के लिए बहुत प्रसिद्ध थे, जो कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं करते थे और उनके बचपन के दौरान उनके आचरण के तरीके से उनके दरबारी बहुत प्रसन्न थे।
दुर्भाग्य से, उनके पिता महाराजा वल्लभ जी महाभारत युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे, जो हस्तिनापुर साम्राज्य के सिंहासन के लिए पांडवों के संघर्ष के दौरान 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। पांडव पक्ष का नेतृत्व 55-56 वर्ष के भगवान कृष्ण जी कर रहे थे। महाराज वल्लभ जी की शहादत के समय राजकुमार अग्रसेन जी 15 वर्ष के थे, सबसे बड़े पुत्र होने के कारण राजकुमार अग्रसेन जी को उत्तराधिकारी बनाया गया।
महाराजा अग्रसेन जी ने स्वयंवर में राजा नागराज जी की बेटी राजकुमारी माधवी से विवाह किया। स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने वरमाला डालकर राजकुमार अग्रसेन जी को चुन लिया। ये शादी इससे दो भिन्न पारिवारिक संस्कृतियों का मिश्रण हुआ। राजकुमार अग्रसेन जी सूर्यवंशी थे और राजकुमारी माधवी नागवंशी थीं। देवताओं के राजा इंद्र ने राजकुमारी माधवी की सुंदरता में आकर्षित होकर उनसे विवाह करने का इरादा बनाया था। हालांकि, इंद्र को अब यह अवगत हो गया था कि राजकुमारी माधवी से विवाह करना असम्भव है। इसके परिणामस्वरूप, इंद्र ने राजकुमार अग्रसेन से ईर्ष्या और क्रोध की भावना महसूस की और उनसे प्रतिशोध लेने का निश्चित निर्णय किया। इसके बाद, वर्षा के देवता के रूप में, इंद्र ने सुनिश्चित किया कि महाराज अग्रसेन के राज्य प्रतापनगर में कोई वर्षा न हो, जिससे सूखा और अकाल हो सके।
महाराजा अग्रसेन धाम समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक उत्थान के मिशन के साथ काम करता है, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, पुस्तकालय, मंदिर और औषधालय भी बनाता है। जिसे हम शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, स्वरोजगार एवं सांस्कृतिक उत्थान जैसे कार्यों को क्रियान्वित करेंगे।
हाराजा अग्रसेन धाम का दृष्टिकोण महाराजा अग्रसेन जी के आदर्शों और सिद्धांतों की दिशा में काम करना है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार प्रदान करने के लिए बनाया गया है प्रशिक्षण, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान, आदर्श परिवार प्रणाली, स्वस्थ लोकतंत्र, समाजवादी राज्य और सामाजिक सद्भाव बनाने में मदद करना।